Thursday, May 31, 2007

श्री वेदान्त देसिकन

रामानुज संप्रदाय के आचार्यो में इन का स्थान बहुत महाथ्वापुर्ना है । इन के समय में अध्वैत वाद का बहुत असर पढ़ रहा था । परन्तु इस स्वामीजी ने उस अद्वैत वाद का खंडन करते हुये अनेक अद्वैथियो को वाद विवाद मे हराकर श्री रामानुज संप्रदाय की श्रेष्टता की स्थापना की।

ये द्रविड़ भाषा, संस्कृत ,पक्रित ,मनिप्र्वालम आदि भाषा के महा पंडित थे। सर्वतंत्र स्व्तंत्रण , कविथार्किक सिम्हां आदि उपादियोम से इनका नाम अलंकृत है । ६४ कलाओं की जानकारी थी।

Friday, May 18, 2007

रामानुज की भक्ती शाखा

रामानुजाचार्य ने विशिष्टाद्वैता संप्रदाय की स्थापना की। इस सिद्वांत के अनुसार जीवात्मा और परमात्मा यद्यपि एक माना जासकता ,फिर भी उन दोनों मेम भिन्नता है। जैसे हम देकते है कि पेड के झड़ ,शाखा ,पत्ते, फूल ,,फल आदि अपने अलग व्यक्तित्व का प्रदर्शन देते हुये पेड के अंग बने हुये है । इसी प्रकार जीवात्मा भी अपने अपने अलग व्यक्तित्व प्रकट करते हुये उस परमात्मा के अंग बनते है।