रामानुज संप्रदाय के आचार्यो में इन का स्थान बहुत महाथ्वापुर्ना है । इन के समय में अध्वैत वाद का बहुत असर पढ़ रहा था । परन्तु इस स्वामीजी ने उस अद्वैत वाद का खंडन करते हुये अनेक अद्वैथियो को वाद विवाद मे हराकर श्री रामानुज संप्रदाय की श्रेष्टता की स्थापना की।
ये द्रविड़ भाषा, संस्कृत ,पक्रित ,मनिप्र्वालम आदि भाषा के महा पंडित थे। सर्वतंत्र स्व्तंत्रण , कविथार्किक सिम्हां आदि उपादियोम से इनका नाम अलंकृत है । ६४ कलाओं की जानकारी थी।
Thursday, May 31, 2007
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